किसकी लहरें ?
भाव -विहीन यह सरस समँदर,
अपने ही धुन मे मग्न,
अपने ही धुन मे मग्न,
साँझ के ढलते दिनकर ने,
जैसे लगा दिया इसमे भयँकर अग्न II 1 II
जैसे लगा दिया इसमे भयँकर अग्न II 1 II
क्या समय-चक्र से बंधा हुआ,
यह जलधर भी?
या फिर ठहरता है ये कभी,
किनारे पर छोडें हुए तिनको को,
किनारे पर छोडें हुए तिनको को,
समेटने के लिए,
या ये कहने के लिए कि :- विशाल समुद्र मैं,
छूता हूँ मैं नभ को भी II 2 II
छूता हूँ मैं नभ को भी II 2 II
क्या समाई बात ये उसके मन मे,
किसके लिए ये अपार जलराशि?
किसके लिए लहरों का आवागमन?
क्यों समय-चक्र से नियमित हैं इनका चलन?
क्यों हुआ है इनका जन्म? II 3II
क्या छुपी है उन असीम गहराईयों मे विलीन?
अंत है या निरंतर यह सागर कहीं,
क्या यह उठता ज्वार - भाटा,है प्रकृति के उठते भावनाओं का सार,
या फिर है कृत्रिम और भाव - विहीन ,
यह जलधि अपार? II 4 IIसो मैं सोचती हूँ कि किसके धुन मे है यह मधमस्त ,
किसके आज्ञाओं से बंधा यह सक्त?
क्यों नही विद्रोह करती कभी इसकी नथ?
किसके लिए हैं ये लहरें व्यस्त?
किसके लिए हैं ये लहरें व्यस्त? II 5II
- दीप्ति श्रीनिवासन
2 comments:
अच्छी कविता है। हिन्दी में और भी लिखिये।
उन्मुक्त,
सराहना के लिए शुक्रिया !
Post a Comment